| ملوّحة، يا مناديل حبّي   | |
| عليك السلام!   | |
| تقولين أكثر مما يقول   | |
| هديل الحمام   | |
| و أكثر من دمعة   | |
| خلف جفن.. ينام   | |
| على حلم هارب!   | |
| مفتّحة، يا شبابيك حبيّ   | |
| تمرّ المدينة   | |
| أمامك ،عرس طغاة   | |
| ومرثاة أمّ حزينة   | |
| و خلف الستائر، أقمارنا   | |
| بقايا عفونه.   | |
| و زنزانتي.. موصدة !  | |
| ملوّثة، يا كؤوس الطفولة   | |
| بطعم الكهولة   | |
| شربنا ،شربنا   | |
| على غفلة من شفاه الظمإ  | |
| و قلنا:   | |
| نخاف على شفتينا   | |
| نخاف الندى.. و الصدأ!  | |
| و جلستنا، كالزمان، بخيله   | |
| و بيني و بينك نهر الدم   | |
| معلّقه، يا عيون الحبيبة   | |
| على حبل نور   | |
| تكسّر من مقلتين   | |
| ألا تعلمين بأني   | |
| أسير اثنين؟   | |
| جناحاي: أنت و حريتّي   | |
| تنامان خلف الضفاف الغريبة   | |
| أحبّكما، هكذا، توأمين! | 
          [11:26 م
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