| خارج الطقس   ،  | |
| أو داخل الغابة الواسعة   | |
| وطني.   | |
| هل تحسّ العصافير  أنّي   | |
| لها   | |
| وطن ... أو سفر ؟   | |
| إنّني أنتظر  ...  | |
| في خريف الغصون القصير   | |
| أو ربيع الجذور الطويل   | |
| زمني.   | |
| هل تحسّ الغزالة أنّي   | |
| لها   | |
| جسد ... أو ثمر  ؟  | |
| إنّني أنتظر  ...  | |
| في المساء الذي يتنزّه بين العيون   | |
| أزرقا  ، أخضرا ،  أو ذهب   | |
| بدني   | |
| هل يحسّ المحبّون أنّي   | |
| لهم   | |
| شرفة ... أو قمر  ؟  | |
| إنّني أنتظر  ...  | |
| في الجفاف الذي يكسر الريح   | |
| هل يعرف الفقراء   | |
| أنّني   | |
| منبع الريح  ؟ هل يشعرون بأنّي   | |
| لهم   | |
| خنجر ... أو مطر  ؟  | |
| أنّني أنتظر  ...  | |
| خارج الطقس  ،   | |
| أو داخل الغابة الواسعة   | |
| كان يهملني من أحب   | |
| و لكنّني   | |
| لن أودّع أغصاني الضائعة   | |
| في رخام الشجر   | |
| إنّني أنتظر  ...  | 
          [2:01 م
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