| هي لا تعرفه.   | |
| كان الزمان   | |
| واقفا كالنهر في جثّته   | |
| قالت له:   | |
| عندي مكان.   | |
| كان ذاك اليوم صيفيّا   | |
| و كان العاشقان   | |
| يستردان من الرّزنامه الأولى   | |
| حساب الشمس ،  | |
| كان الأمس   | |
| و الحاضر كان ..  | |
| هي لا تعرفه   | |
| قالوا لها: يأتي مع النهر   | |
| الذي يأتي مع الفجر   | |
| و كان التوأمان   | |
| ضفتي نهر.. يسيران  معا   | |
| أو يقفان   | |
| و هما..لا يعرفان !..  | |
| كان ذاك اليوم حقلا   | |
| من ذبول وحنان   | |
| و عما يقتربان   | |
| و يموتان من الموت   | |
| و لا يلتقيان..   | |
| هي لا تعرفه   | |
| لكنها تشربه كالماء في رمل الزمان .  | |
| بعد عامين من الهجرة   | |
| في الهجرة   | |
| ماتا   | |
| في انفجار القبلة الأولى   | |
| و في جثّته، كان الزمان   | |
| واقفا كالنهر في جثّته   | |
| قالت له:   | |
| عندي مكان.. | 
          [2:34 م
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