| و أصبّ الأغنية   | |
| مثلما ينتحر النهر على ركبتها  .  | |
| هذه كل خلاياي   | |
| و هذا عسلي  ،   | |
| و تنام الأمنية  .  | |
| في دروبي الضيقة   | |
| ساحة خالية  ،   | |
| نسر مريض  ،   | |
| وردة محترفة   | |
| حلمي كان بسيطا   | |
| واضحا كالمشنقه  :   | |
| أن أقول الأغنية  .  | |
| أين أنت الآن ؟  | |
| من أي جبل   | |
| تأخذين القمر الفضي ّ  | |
| من أيّ انتظار  ؟  | |
| سيّدي الحبّ  ! خطانا ابتعدت   | |
| عن بدايات الجبل   | |
| و جمال الانتحار   | |
| و عرفنا الأوديه   | |
| أسبق الموت إلى قلبي   | |
| قليلا   | |
| فتكونين السفر   | |
| و تكونين الهواء   | |
| أين أنت الآن  | |
| من أيّ مطر   | |
| تستردين السماء  ؟  | |
| و أنا أذهب نحو الساحة المنزويه   | |
| هذه كل خلاياي  ،   | |
| حروبي  ،   | |
| سبلي  .  | |
| هذه شهوتي الكبرى   | |
| و هذا عسلي  ،   | |
| هذه أغنيتي الأولى   | |
| أغنّي دائما   | |
| أغنية أولى ،   | |
| و لكن   | |
| لن أقول الأغنية  . | 
          [6:19 م
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