| كان رسّاما،  | |
| ولكن الصّور  | |
| عادة،  | |
| لا تفتح الأبواب  | |
| لا تكسرها..  | |
| لا تردّ الحوت عن وجه القمر.  | |
| (0يا صديقي ،أيّها الجيتار   | |
| خذني..  | |
| للشبابيك البعيده)  | |
| شاعرا كان،  | |
| ولكن القصيده  | |
| يبست في الذاكره  | |
| عندما شاهد يافا  | |
| فوق سطح الباخره  | |
| (يا صديقي، أيّها الجيتار   | |
| خذني..  | |
| للعيون العسليّه)  | |
| كان جنديّا،  | |
| ولكن شظيّه  | |
| طحنت ركبته اليسرى  | |
| فأعطوه هديّه:  | |
| رتبة أخرى  | |
| ورجلا خشبّيه!..  | |
| (يا صديقي، أيّها الجيتار   | |
| خذني..  | |
| للبلاد النائمه)  | |
| عازف الجيتار يأتي  | |
| في الليالي القادمه  | |
| عندما ينصرف الناس ألى جمع تواقيع الجنود  | |
| عازف الجيتار يأتي  | |
| من مكان لا نراه  | |
| عندما يحتفل الناس بميلاد الشهود  | |
| عازف الجيتار يأتي  | |
| عاريا، أو بثياب داخليّه.  | |
| عازف الجيتار يأتي  | |
| وأنا كدت أراه  | |
| وأشمّ الدم في أوتاره  | |
| وأنا كدت أراه  | |
| سائرا في كل شارع  | |
| كدت أن أسمعه  | |
| صارخا ملءالزوابع  | |
| حدّقوا:  | |
| تلك رجل خشبّيه  | |
| واسمعوا:  | |
| تلك موسيقى اللحوم البشريّه | 
          [3:19 م
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