| وراء الخريف البعيد  | |
| ثلاثون عاما  | |
| وصورة ريتا  | |
| وسنبلة أكملت عمرها  | |
| في البريد.  | |
| وراء الخريف البعيد  | |
| أحبك يوما.. وأرحل  | |
| تطير العصافير باسمي  | |
| وتقتل  | |
| أحبك يوما  | |
| وأبكي  | |
| لأنك أجمل من وجه أمي  | |
| وأجمل  | |
| من الكلمات التي شرّدتن..ي  | |
| على الماء وجهك.  | |
| ظل السماء  | |
| يخاصم ظلّي  | |
| وتمنعني من محاذاة هذا المساء  | |
| نوافذ أهلي.  | |
| متى يذبل الورد في الذاكره؟  | |
| متى يفرح الغرباء؟  | |
| لكي أصف اللحظة العائمه  | |
| على الماء_  | |
| أسطورة أو سماء..  | |
| ..وتحت السماء البعيده  | |
| نسيتك،  | |
| تنمو الزنابق  | |
| هناك.. بلا سبب  | |
| والبنادق  | |
| هناك.. بلا غضب  | |
| والقصيده  | |
| هناك بلا شاعر  | |
| والسماء البعيده  | |
| تحاذي سطوح المنازل  | |
| وقبعة الشرطيّ  | |
| وتنسى جبين..ي  | |
| وتحت المساء الغريب  | |
| تعذّبنا الأرض،  | |
| جسمك يقتبس البرتقال  | |
| ويهرب منّي.  | |
| أحبّك،  | |
| والأفق يأخذ شكل سؤال  | |
| أحبّك،  | |
| والبحر أزرق  | |
| أحبّك،  | |
| والعشب أخضر  | |
| أحبّك_ زنبق  | |
| أحبّك_ خنجر  | |
| أحبّك يوما  | |
| وأعرف تاريخ موتي  | |
| أحبّك يوما  | |
| بدون انتحار  | |
| وراء الخريف البعيد  | |
| أمشط شعرك.  | |
| أرسم خصرك.  | |
| في الريح، نجما.. وعيد  | |
| أحبك يوما  | |
| أحبك قرب الخريف البعيد  | |
| تمرّ العصافير باسمي  | |
| طليقه  | |
| وباسمي_ يمر النهار  | |
| حديقه،  | |
| وباسمك أحيا  | |
| أحبك يوما  | |
| وأحيا..  | |
| وراء الخريف البعيد | 
          [3:57 م
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