| مرة أخرى  | |
| ينام القتله  | |
| تحت جلدي  | |
| وتصير المشنقه  | |
| علما  | |
| أو  | |
| سنبله  | |
| في سماء الغابة المحترقه  | |
| حذف الظل يديها من جبيني  | |
| فاختبأنا في الظهيره  | |
| مرة أخرى  | |
| يمر العسكريّ  | |
| تحت جلدي  | |
| مرة أخرى  | |
| يواري شفتي  | |
| في تجاعيد النشيد الوطن!ي  | |
| حذف الظل يديها من جبيني   | |
| فاختبأنا في الظهيره  | |
| مرّة أخرى  | |
| يفر الشهداء  | |
| من أغاني الشعراء  | |
| مرة أخرى  | |
| نزلنا عن صليبينا  | |
| فلم نعثر على أرض  | |
| ولم نبصر سماء  | |
| حذف الظلّ يديها من جبيني  | |
| فاختبأنا في الظهيره  | |
| مرّة أخرى  | |
| اتحدنا  | |
| أنا والقاتل والموت المعاد  | |
| أصبحت حريّتي عبئا  | |
| على قلبي  | |
| وعيناها منافي وبلاد  | |
| مرّة أخرى  | |
| يضيع الماء في الغيم  | |
| وندعى للجهاد!..  | |
| حذف الظلّ يديها من جبيني  | |
| فاختبأنا في الظهيره  | |
| قتلوها في الظهيره  | |
| بدلا مني،  | |
| ولم يعتقلوني  | |
| مرة أخرى  | |
| لأن القتله  | |
| تحت جلدي | 
          [8:07 م
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