بلادي بعيده | |
تبخر مني ثراها | |
إلى داخلي. | |
لا أراها. | |
وأنت بعيده | |
أراك | |
كومضة ورد مفاجىء | |
وفي جسدي رغبة في الغناء | |
لكل الموانىء. | |
وإني أحبّك | |
لكنني | |
لا أحبّ الأغاني السريعه | |
ولا القبل الخاطفه | |
وأنت تحبّينها | |
كبّحارة يائسي..ن | |
أرى عبر زنبقة المائده | |
و عبر أناملك الشاردة | |
أرى البرق يخطف وجهي القديم | |
إلى شرفة ضائعة | |
و أنت تحبّينني _ | |
قلت _ | |
من أجل هذا المساء. | |
لنرقص إذن ، | |
أنا الماء و الظل | |
و الظل و الماء لا يعرفان الخيانة | |
و لا الانكسار | |
و لا يذكران | |
و لا ينسيان | |
و لكن.. لماذا ؟ | |
لماذا توقفت الأسطوانه | |
و من خدش الأسطوانه | |
لماذا تدور على نفسها: | |
بلادي بعيده | |
بلادي | |
بلادي | |
بلادي |
[8:11 م
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